इस कविता संग्रह का मूल आधार है – जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। हम अपूर्ण हैं – अपूर्ण पूर्ण को पूर्ण रूप से जानने का प्रयास तो कर सकता है किन्तु पूर्ण को सम्पूर्ण रूप से नहीं जाना जा सकता।
विज्ञान मेरा कार्यक्षेत्र था तो साहित्य मेरी साधना थी और मैंने अनुभव किया कि विज्ञान और साहित्य एक दूसरे के परिपूरक हैं – दोनों को सत्य की तलाश है और इस रहस्यमयी प्रकृति को परखने और जानने की जिज्ञासा है। दोनों के अध्ययन ने मुझे दिन प्रतिदिन की ऊँच नीच, सुख दुख और प्रकृति की रहस्यमयी रचना से परिचित होने का बहुत बड़ा अवसर प्रदान किया।
हुस्ने नजर हमारे व्यक्तित्व और संसार के मायाजाल का दर्पण है।