चरण सिंह अभिलेखागार द्वारा प्रकाशित चरण सिंह का संक्षिप्त जीवन परिचय श्री सिंह के जीवन पर स्वामी दयानन्द और मोहनदास गांधी के शुरूआती प्रभाव, उनकी स्वतंत्रता संग्राम में विसर्जित भागीदारी, उत्तर प्रदेश तदन्तर दिल्ली में उनका राजनीतिक जीवन, ग्रामीण भारत के जैविक बुद्धिजीवी के रूप में उनका स्थाई महत्व, तथा भारत की आज़ादी के बाद आई विभिन्न सरकारों से ‘विकास’ के अर्थ पर उनके बौद्धिक मतभेदों के होते हुए उनकी जटिल, परिष्कृत एवं सुसंगत रणनीति के विषय में पाठक को परिचित कराता है।
गांधीवादी सांचे में ढले चरण सिंह सादगी, सदाचार और नैतिकता से ओतप्रोत व्यक्ति थे। इन विशिष्टताओं ने उन्हें एक कुशल प्रशासक और भू-कानूनों के जानकार की प्रतिष्ठा दी। उन्होंने लघु उत्पादकों और लघु उपभोक्ताओं को साथ लाने वाली व्यवस्था, जो न समाजवादी थी न पूंजीवादी, अपितु भारत की गरीबी, बेरोजगारी, गैरबराबरी, जातिवाद और भ्रष्टाचार की समस्याओं को उठाने वाली मूलभूत लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास किया। ये मुद्दे आज भी जीवन्त एवं प्रासंगिक हैं।
असामान्य क्षमताओं से युक्त विद्वान श्री सिंह ने गांव एवं कृषि को केन्द्र में रखकर भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था में अपनी मान्यताओं पर आधारित अनेक पुस्तकें, राजनीतिक पैम्फलेट एवं अनेकानेक लेख अंग्रेजी में लिखे, जो मौजूदा कृषि संकट के दौर में तथा गांवों में रह रही हमारी 67 प्रतिशत आबादी की समस्याओं के समाधान में भारत के लिए आज भी प्रासंगिक हैं। उनका सबसे पहला प्रकाशन 1948 में उत्तर प्रदेश में “जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार समिति” की 611 पृष्ठ की रिपोर्ट थी। उन्होंने अन्य पुस्तकें लिखीं जिनमे से कई हैं – Abolition of Zamindari: Two Alternatives, Joint Farming X-Rayed: The Problem and Its Solution, India’s and Its Solution, India’s Economic Policy: The Gandhian Blueprint and Economic Nightmare of India: Its Cause and Cure.